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Swalamban.in स्वावलम्बन की आधिकारिक वेब साईट स्वावलम्बन स्टोर है। उत्तम गुणवत्ता की पूरी श्रृंखला, भरोसेमंद पंचग्वय, आयुर्वेद उत्पाद अब आपके द्वार पर सिर्फ एक क्लिक दूर हैं। हम सर्वोत्तम सेवा, गुणवत्ता वाले उत्पादों, वास्तविक समय सहायता के लिए समर्पित हैं। हम सर्वोत्तम मूल्य पर पंचगव्य औषधी , आयुर्वेदिक दवाइयों, स्वानुभुत योग, शास्त्रोक्त औषधी, की पूरी उत्पाद श्रृंखला पेश करते हैं।


यहाॅ गौ माता के पंचगव्य पर अधिक ध्यान दिया जाता स्वचछ, सुंदर गीर नस्ल की गौमाता का पालन एवं उनका वषं वद्धी एवं स्वच्छता का ध्यान रखते हुए पंचगव्य का उपयोग किया जाता है प्रत्येक औषधी में गौमुत्र का उपयोग नहीं किया जाता है ! जिस वस्तु पर लिखा है उन्हीं औषधी में गीर देषी नस्ल की गौमाता का पंचगव्य उपयोग किया जाता है इसकी गुणवत्ता पर विषेष ध्यान दिया जाता है !


वर्तमानः धनाध्यक्ष प्रायः अधिक आमदनी वाले कारोबार बड़ाते है और मिल कारखाने जमाने में अधिक लाभ देखते है! यह प्रवृत्ति जल्दी ही बदली जानी है! टसमंजस उन के सामने है जो बडे़ व्यवसायों में फंसे है ! उन्हे समय के साथ बदलना होगा! अच्छा हो वे हठ न करें और समय रहते बदलने की प्रक्रिसा आंरभ कर दें अन्यथा एक साथ झटका पड़ने पर वे संभाल न सकेगें ! अगले दिनों अर्थ तं; चलेगा इसी तरह मुड़ेगा इसी तरफ इसलिए इस संभावना को भविष्यवाणाी मानकर नोट कर लिया जाए और जीन से इस का संबंध है वे अपना ढर्रा अभी से बदलना प्रारभं कर दें !

-पं.श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति जुलाई-1984

 

प्रमाणिकता तीन पक्ष है-


1. व्यक्तित्व की प्रमाणीकता-यदि उद्यमी व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में जन मान्यता गलत है, उसे स्वार्थी छली माना जाता है, उसके प्रति लोग अविष्वास ही रखेगें !

2. उत्पाद की प्रमाणिकता-जो उत्पाद तैयार किया जा रहा है गुणवतता व मुल्य की दृष्टि से प्रमाणिकता सिद्ध होने चाहिए ! जनता की इस कसौटी पर जो उत्पाद खरा सिद्ध नही होता वह चल नही पाता !

3. व्यवस्था तंत्र की प्रमाणिकता- उद्यमी का तंत्र भी प्रमाणिक होना चाहिए

4. कानून-कानूनी दृष्टि से भ उत्पादन के अधिकार ब्रिकीकर, आयकर आदि नियमों का ठीक प्रकार अनुपालन किया जा रहा है !मिषन का स्वावलम्बन का लक्ष्य व्यक्ति को सम्पन्न, समृद्ध व धनाडय बनाना नहीं है, बल्कि उसे ब्राहणोहित जीवनयापन के लिए समर्थ बनाना है ! सम्मानपूर्वक अपना जीवन व्यापन कर सके ऐसा जीवन बनाना है !

पं.श्रीराम शर्मा आचार्य आर्थिक स्वावलम्बन